यह झील उत्तर प्रदेश के बदायूं-मैनपुरी हाईवे पर कासगंज जनपद की पटियाली तहसील के अंतर्गत आता है यह एक गोखुर झील है ये दरियाव गंज गोखुर झील दरियाव गंज झील लगभग 7 से 8 किलो मीटर में फैला है जिला प्रशासन और प्रादेशिक विभागों ने इसकी जितनी उपेक्षा की है, प्रकृति इस पर उतनी ही मेहरबान है। रंगबिरंगे देसी विदेशी पक्षियों से लेकर मनभावन प्राकृतिक नजारों की यहां भरमार है। सर्दियों के मौसम में मेहमान परिंदे झीलों में कलरव करते हैं। जिले की दरियावगंज झील ऐतिहासिक धरोहर है, लेकिन लंबे समय से यह दुर्दशा का दंश झेल रही थी। इस झील को लीडिंग झील के रूप में चिह्नित किया है।
कैंपा योजना, नमामि गंगे योजना और बूढ़ी गंगा जीर्णोद्धार योजना के तहत इस झील की खूबसूरती के लिए प्रस्ताव तैयार किए। कैंपा योजना के तहत धनराशि मिलने पर यहां खूबसूरती का काम चल रहा है। प्रभागीय वन अधिकारी की पहल पर इस झील की खूबसूरती के लिए अब और भी संभावनाएं बढ़ गई हैं। इसमें कमल व् मछली पालन का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा होता है यह झील किसी विभाग के अधीन नहीं आती। मछली पालन का ठेका जरूर मत्स्य विभाग उठाता है
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झील या दरिया के नाम पर यहाँ तीन दरियावगंज बसे हैं -दरियावगंज गाँव,थाना दरियावगंज ,रेलवे रोड़ स्टेशन दरियाव गंज जो गंगा नदी के मार्ग परिवर्तन के कारण बनी है
यहाँ विदेशी पच्छी कौन कौन से हैं?
यहाँ पर विदेशी पछियों की लगभग 10 प्रजातियाँ जो अक्टूबर नवम्बर में देखने को मिलतीं है जैसे परवल ,मोरेन ,हेरोन,क्रुट,प्रोवाइन पेंटेड स्टार्फ डार्टर, फार्मेंनेट व हेरांज और बहुत से पच्छी मिलते है जिन्हें यहाँ की आबोहवा बहुत पसंद है रंगबिरंगे पक्षी यहां बड़ी संख्या में डेरा जमाए हुए हैं। देसी सारस भी हैं। जैव विविधता भी इतनी कि शायद ही आसपास कहीं मिले। यहां सर्दियों के मौसम में वह सब कुछ है, जो पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करता है। आसमान से देखने पर झील अद्र्धचंद्राकार रूप में दिखाई देती है।
कमल गट्टा भी निकलते हैं झील से
बूढ़ी गंगा के डेल्टा में सदियों से पल रही झील के गर्भ में कमल दल खिलते हैं। कमल का फूल का उपयोग पूजा पाठ आयुर्वेदिक औषधि में भी किया जाता है कमल का फूल देखने में बहुत सुंदर लगता है कमल का फुल शरीर में सुजन,बुखार,खांसी और पेट की अनेको समस्याओं में उपयोग किया जाता है