पुरुषों का यौन रोग
जननेंद्रिय से संबंधित रोगों के गुप्त रोग अथवा यौन रोग कहा जाता है। इसमें से कुछ रोग आहार बिहार के कारण, कुछ जन्मजात अर्थात प्राकृतिक और कुछ संसर्ग दोष के कारण उत्पन्न होते हैं। प्रमेह, धातु दोर्लाव्य आदि रोगों का मूल कारण आहार बिहार की गड़बड़ी, नपुंसकता तथा बंधुत्व आदि के कारण प्राकृतिक तथा उपदंश, सुजाक रोगों का कारण संसर्गजन्य हो सकता है।
होम्योपैथी के मत से(1) सोरा (Psora) जिसके कारण खुजली आदि उत्पन्न होती है। (2) साइकोसिस (Sycosisi) जिसके कारण प्रमेह उत्पन्न होता है तथा (3) सिफिलिस(Syphilis) जिसके कारण उपदंश प्रकट होता है इन तीनों दोषों के कारण ही मनुष्य कष्ट भोगता है। मनुष्य के शरीर में यह विष दंश परंपरा के कारण भी आते हैं। अतः जब तक इन मूल विष दंश के जहर को सर्वथा नष्ट नहीं कर दिया जाता, तब तक रोगी का पूर्ण स्वस्थ हो पाना असंभव है। अन्य चिकित्सा विधियों की अपेक्षा केवल होम्योपैथी ही इन दोनों को समूल नष्ट कर पाने समर्थ सिद्ध होती है, अतः गुप्त अथवा रतिज रोगों की चिकित्सा के लिए होम्योपैथी का ही आश्रय लेना चाहिए।
यौन रोगों में कुछ लोग केवल पुरुषों को कुछ केवल स्त्रियों को और कुछ स्त्री-पुरुष दोनों को हो सकते हैं।
नपुंसकता
नपुंसकता कई प्रकार की होती है जन्मजात, बहु मैथुन अथवा अप्राकृतिक मैथुन के कारण होने वाली अथवा स्नायविक दुर्बलता। जन्मजात नपुंसकता का कोई उपचार नहीं होता है, परंतु अन्य कारणों से उत्पन्न होने वाली नपुंसकता की चिकित्सा की जा सकती है।
नपुंसक व्यक्ति संतान उत्पन्न करने में असमर्थ रहता है, ऐसे कुछ व्यक्ति संभोग करने में भी असफल सिद्ध होते हैं, कुछ लोग संभोग क्रिया में प्रवृत्त हो जाते हैं, परंतु वे उसका समुचित आनंद नहीं उठा पाते। शीघ्र स्खलन अथवा जननेंद्रिय की शिथिलता के कारण उनके साथियों को भी असंतोष एवं निराशा का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार की नपुंसकता ऐसी भी होती है, जिसमें पुरुष मैथुन करने में समर्थ होता है, परंतु उसके वीर्य में शुक्र कीटों का अभाव पाया जाता है, जिसके कारण वह गर्व स्थित कर पाने में समर्थ नहीं होता।
विभिन्न कारणों से उत्पन्न नपुंसकता को दूर करने में निम्नलिखित होम्योपैथिक उपचार सहायक सिद्ध होते हैं
लाइकोपोडियम 30, 200, 1M- डॉक्टर नैश के मतानुसार यह नपुंसकता को दूर करने वाले सर्वोत्तम औषधि में से एक है। यदि किसी बड़ी आयु के विदुर ने किसी नव युवना से विवाह किया हो और वह उसके प्रति मैथुन संबंधी कर्तव्य का पालन में अशक्त सिद्ध हो तो उसके लिए यह औषधि श्रेष्ठ फलदायक है।
हस्तमैथुन अथवा अन्य युवाओं को कर्मों के कारण नपुंसक हो गए पुरुषों के लिए भी यह अति उत्तम है। अधिक सहवास आदि के कारण जननेंद्रिय की छोटी, शिथिल, ठंडी तथा शक्ति हीन हो जाने पर इस औषधि के सेवन से आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होता है। जिन लोगों को अपनी कामवासना में तो तनिक भी कमी का अनुभव नहीं होता, परंतु मैथुन क्रिया के समय जो स्वयं को शक्तिहीन अनुभव करते हो, ऐसे निराश यौन रोगियों के लिए इस औषधि की उच्च शक्ति की मात्रा 10 - 12 दिन के अंदर से देने पर खूब लाभ प्राप्त होता है।
इस औषधि को आरंभ में निम्न शक्ति में देकर भी देखा जा सकता है परंतु यदि उससे अपेक्षित लाभ ना हो तो इसे उच्च शक्ति में ही देना चाहिए
नोट-अधिक मैथुन के कारण होने वाले ध्वज भंग स्त्रियों के बांझपन तथा पुराने रोग में भी यह बहुत हितकर है।
फास्फोरस 30,200 - डॉक्टर फैरिंटन के अनुसार यह औषधि सामान्य नपुंसकता में कोई प्रभाव नहीं करती, परंतु अत्यधिक मैथुन के कारण उत्पन्न हुई नपुंसकता अथवा शारीरिक एवं मानसिक प्रवृत्ति में डूबे रहने के कारण कामेइंद्रिय की शक्ति लुप्त हो जाने से उत्पन्न हुई नपुंसकता में यह श्रेष्ठ लाभ प्रदान करती है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि यदि पूर्व में कामेंइंद्रिय का अत्यधिक उपयोग किया जा चुका हो और उसके कारण बाद में नपुंसकता आ गई हो तो इस औषधि के सेवन से आवश्यक लाभ होगा। इस औषधि का रोगी प्रचंड वासना युक्त होते हुए भी संभोग क्रिया में अशक्त हो जाते हैं। ऐसे लोगों की नष्ट हुई काम शक्ति को वापस लाने में यह औषधि आश्चर्यजनक लाभ प्रदान करती है।
कैल्केरिया कार्ब 30, 200- डॉ ज्हार के मतानुसार हस्तमैथुन अथवा विषय भोग के कारण उत्पन्न होने वाली अशक्तिता को दूर करने के लिए 3 औषधियों ( नक्श, सल्फर और कैल्केरिया) ने चिकित्सकों का ध्यान आकर्षित किया है, उनमें यह एक मुख्य औषधि है। जब रोगी को मानसिक विषय वासना के लक्षण अत्यधिक परंतु शारीरिक कम पाए जाते हो, अर्थात मनुष्य मैथुन क्रिया के विषय में सोचता और कहता तो अधिक हो, परंतु कार्य रूप से परिणित कम कर पाता हो , तो यह औषधि उपयोगी सिद्ध होती है।
ऐसे पुरुषों की संभोग काल में इंद्रियां उत्तेजना घट जाया करती है, एवं वीर्य स्रावी समय से पूर्व अथवा अधूरा होता है। अपनी शिथिलता के कारण वह शक्ति तथा नैतिक जीवन बिताने का निश्चय कर बैठता है, परंतु बाद में यदि कभी क्रिया संभोग में प्रवृत्त होता है तो उसे चक्कर आने लगते हैं, सिर में दर्द होने लगता है तथा अत्यधिक कमजोरी अनुभव होने लगती है। ऐसे रोगियों के लिए यह औषधि अमृततुल्य लाभ करती है।
ऐगनस कैक्टस 2X,1,3,6- डॉक्टर फेरिंगटन के मतानुसार जो वृद्ध पुरुष अपनी युवावस्था में अत्यधिक विषयी रहते हो तथा 60 वर्ष की आयु प्राप्त होने पर भी मिथुन के लिए उतने ही अधिक उत्तेजकशील तो बने रहते हैं, परंतु शारीरिक सृष्टि से असमर्थ हो जाते हो तथा उस असमर्थता के कारण उनका स्वता ही वीर्य स्राव होता रहता हो, उनके लिए यह औषध विशेष हितकर सिद्ध होती है। रोग की प्रथम अवस्था में यह अधिक लाभ प्रदान करती है।
ग्रैफाइटिस 6, 30, 200- डॉक्टर फैरिंगटन के मतानुसार अदम्य कामोत्तेजना होते हुए भी संभोग क्रिया में किसी प्रकार के आनंद भी अनुभूत अथवा वीर्य स्राव ना होने के कारण वाली नपुंसकता में यह औषधि लाभ प्रदान करती है। स्त्रियों की संगम से अनिच्छा में विशेष हितकर है।
सल्फर 30- शारीरिक कमजोरी के कारण शिथिलता, शिथिलता के कारण सो जाना तथा सो कर उठने के बाद पुनः शिथिलता का अनुभव, संबंधित तथा थकान को सहन न कर पाना, किसी भी कारण से वीर्य क्षरण हो जाने पर तबीयत का और अधिक गिरजाना एवं दूसरे दिन स्वभाव में चिड़चिड़ापन, सिर दर्द तथा रीड में की हड्डी में अत्यधिक शक्ति का अनुभव होना, नींद में वीर्यपात,मल मूत्र त्याग के समय वीर्य का गिरना अथवा प्रोस्टेट स्राव का स्वय स्रावित होते रहना आदि लक्षणों में यह लाभकारी है। जननेंद्रिय में ठंड तथा उसका शिथिल होना अथवा सिकुड़ जाना यह मुख्य लक्षण प्रकट होते हैं, इस बीमारी में इस औषधि को देकर अत्यधिक लाभ प्रदान किया जा सकता है।
सेलेनियम 30, 200- सल्फर के अन्य लक्षणों में दो-तीन बार देने से लाभ होता है। स्त्री में योन संबंधी अनुकूल प्रतिक्रिया के अभाव में भी यह विशेष लाभ प्रदान करती है।
कोनियम 3, 200- यह औषधि ग्रंथियों को विशेष रूप से प्रभावित करती है। यदि नपुंसकता के साथ ही वीर्य के शुक्र कीटों का अभाव हो, कामोत्तेजना की कमी अथवा सर्वथा अभाव हो, मिथुन में प्रवृत्ति होने की शक्ति ही ना हो एवं स्त्री का समीपस्थ प्राप्त होते ही वीर्य स्खलित हो जाता हो तो इन सब लक्षणों में यह औषधि विशेष लाभ प्रदान करती है
कैलेडियम 3, 6- हस्तमैथुन के कारण आई हुई नपुंसकता, अर्ध निंद्रा में जननेंद्रिय की उत्तेजना, परंतु नींद के खुल जाने पर उसका शांत हो जाना, जननांगों की खुजली, मैंथुन के समय वीर्य स्खलित ना होने तथा युवा दृष्टि के लक्षणों में लाभ प्रदान करती है।
स्ट्रिक्नीनम 3,30- स्त्री शरीर का संपर्क पाते ही कामेच्छा का अत्यधिक भड़क उठना अथवा अंडकोष ओं का कड़ा पड़ जाना, परंतु वीर्य में शुक्र कीटों का अभाव होना, जिसके कारण गर्भ स्थिति ना हो सके ऐसे कारणों वाली नपुंसकता में यह बहुत लाभ प्रदान करती है। स्त्री की यौन संबंधी की प्रबल इच्छा होने पर यह उसे शांत करने में सहायक ता प्रदान करती है।
आयोडम 3, 30- शुक्र कीटों के अभाव के कारण अंडकोषओं का शूज जाना अथवा कड़ा पड़ जाना अथवा अंडकोष में पानी भर जाना इन लक्षणों में यह औषधि लाभ प्रदान करती है। स्त्री के स्तनों की सूजन में भी बहुत लाभ प्रदान करती है।
चिनिनम सल्फ 3, 30- वीर्य में शुक्र कीटों का अभाव हो तथा मिथुन इच्छा को किसी कारण बस दबाया गया हो अथवा वह नष्ट हो गई हो तो इस औषधि के प्रयोग से लाभ प्राप्त होता है।
नूफर ल्युटियम Q,6- संगमेच्चा का सर्वथा अभाव, मूत्र त्याग के समय वीर्य स्खलन, जननेंद्रिय की अत्यधिक शिथिलता तथा नपुंसकता के लक्षणों में विशेष लाभ प्रदान करती है
टरनेरा (डैमेनियम) Q- यौन विषयक स्नायविक दुर्बलताजन्य नपुंसकता तथा प्रोस्टेट ग्लैंड का स्राव होने पर भी इसमें कीटों का अभाव के लक्षण में इस औषधि के मूल अर्क की 30 से 40 बूंदे ताजा पानी के साथ रोज दो-तीन बार देने से लाभ होता है। स्त्री में यौन संबंधी अनुकूल प्रक्रिया के अभाव में भी विशेष लाभ प्रदान करती है।
ओनोस्मोडियमक C.M- स्त्री अथवा पुरुष दोनों की भी योन कामेच्छा के सर्वथा अभाव में इस औषधि की एक मात्रा देने से ही आश्चर्यजनक परिवर्तन प्रकट होता है। जिन स्त्रियों के संतान ना हो उनके संतान देने में यह शायद सहायक बनती है। स्त्रियों के लिए यह औषधि विशेष लाभ प्रदान करती है।
स्टैफिसेग्रिया 3,30- अत्यधिक विषय भोग के कारण उत्पन्न हुई नपुंसकता में लाभ प्रदान करती है। संपूर्ण शरीर में कमजोरी, लज्जा से झुकी दृष्टि, पीठ के दर्द तथा सदैव मैथुन के विषय में ही सोचते रहना आदि लक्षणों में बहुत हितकर है।
नेट्रम म्यूर 30,200- मैथुन कर चुकने के बहुत देर बाद वीर्य स्खलित होने के लक्षणों में बहुत लाभ प्रदान करती है।
ऐबेना सैटाइबा Q- अत्यधिक मानसिक परिश्रम तथा हस्तमैथुन के कारण उत्पन्न नपुंसकता में इस औषधि को 15 से 30 बूंद तक की मात्रा में दो बार सेवन करने से बहुत लाभ प्रदान होता है। कुछ चिकित्सक से केवल 5 बूंद की मात्रा से भी लाभ ले देने की सलाह प्रदान करते हैं।
सैबाल- सैरुलाटा 3- जननेंद्रिय के ठंडे पड़ जाने एवं जननेंद्रिय तथा अंडकोष के सुकून जाने वाली नपुंसकता के लक्षणों में बहुत लाभ प्रदान करती है।
सैबाल सेरुलेटा Q- शारीरिक कमजोरी के कारण मैथुन करने में असमर्थ रहने पर इस औषधि को 5 से 10 बूंद तक की मात्रा में 2 बार सेवन करना बहुत लाभकारी रहता है। स्वाभाविक दुर्बलता अथवा अधिक इंद्रिय परिचालन के कारण संगमेंद्रिय के अधिक शक्तिहीन हो जाने में बहुत उपयोगी है।
आर्निका 3X,3- चोट के कारण ध्वज भंग होने तथा उस से आई हुई नपुंसकता में यह लाभकारी है।
नाइट्रिक एसिड 3, 6 200- यदि लाइको पोडियम के सेवन से लाभ ना हो तो इस औषधि का उपयोग करके देखना चाहिए।
हाईपेरिकम 1X- यदि मेरुदंड में चोट लगने के कारण नपुंसकता हो तो इस औषधि का प्रयोग करके देखना चाहिए।
नक्स भूमिका 3, 30- यदि कब्ज, अजीर्ण, अग्नि माध्य आदि के कारण कामेच्छा में कमी आ गई हो तो इस औषधि का सेवन करना चाहिए।
योहिम्बिनम1X,2X- मैथुन करने की इच्छा में कमी की प्रवृत्ति होने पर इस औषधि का नित्य दो या तीन ग्रहण की मात्रा में सेवन से लाभ होता है तथा कामेच्छा की वृद्धि होती है। परंतु जिन लोगों को अतिसार अथवा आमाशय आने की कोई बीमारी हो उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए। यदि औषधि का मदर टिंक्चर स्नायविक नपुंसकता में श्रेष्ठ लाभ प्रदान करता है
एनाकार्डियम 6, 200- हस्तमैथुन अथवा वेश्या गमन के कारण जिनकी इंद्रियों में ध्वज भंग होकर शिथिलता आ गई हो तथा काम शक्ति क्षीण हो गई हो, उनके लिए यह औषधि विशेषकर लाभ प्रदान करती है।
ब्यूफो 30, C.M- उक्त औषधियों के सेवन से लाभ ना होने पर नपुंसकता दूर करने के लिए नित्य प्रातः तथा रात्रि के समय दिन में 2 बार इस औषधि का सेवन करना चाहिए। आरंभ में 30 शक्ति में ही सेवन करना उचित रहता है। कभी-कभी उच्च शक्ति में सेवन करने की आवश्यकता भी पड़ सकती है।
एसिड फास 1, 6- यह औषधि जननेंद्रिय की दुर्बलता में हितकर है। अत्यधिक स्त्री प्रसंग के कारण उत्पन्न नपुंसकता में लाभ प्रदान करती है।
जेल्सीमियम 1X,3- यह औषधि भी जननेंद्रिय कि एकदम शिथिलता या दुर्बलता में लाभ प्रदान करती है।
एमोन कार्ब 3X- जननेंद्रिय की दुर्बलता, विशेषकर स्त्रियों के संगम से अनिच्छा में बहुत लाभ प्रदान करती है।