बवासीर या अर्श ( Piles Or Hemorrohoids)
लक्षण:- मलद्वार के अंतिम भाग की शिराओं के सूजने, फूलने अथवा बढ़ जाने को बवासीर कहते हैं। इस फूली हुई सिरा को बलि अथवा मस्सा कहा जाता है। इसका आकार मटर के दाने जैसा होता हैअधिक फूली हुई शिरा लंबे अंगूर जैसे आकार की भी हो सकती है।
बवासीर रोग में कभी तो एक ही मस्सा होता है और कभी एक से अधिक मस्से आपस में जुड़े हुए, अंगूर के गुच्छे जैसे ही दिखाई पड़ते हैं। यह मस्सा यदि मलद्वार के बाहरी भाग में रहे तो एक्सटर्नल पाइल्स और यदि मलद्वार के भीतरी द्वार में रहे तो उसे इंटरनल पाइल्स कहा जाता है। यह मस्से जब फटते हैं, तब इनमें रक्त बहने लगता है।
प्राय: भीतरी मस्से ही अधिक फटते हैं। रक्त स्रावी मस्सों को खूनी बवासीर कहा जाता है। जिन मस्सों में खून नहीं बनता, परंतु केवल दर्द, जलन अथवा खुजली के लक्षण ही प्रकट होते हैं, उन्हें बादी बवासीर कहते हैं इस प्रकार के मस्से प्राय: गुदा के बाहरी भाग में ही पाए जाते हैं। इस प्रकार बवासीर की बीमारी दो प्रकार की होती है (1) खूनी बवासीर (2) बादी बवासीर। बवासीर के कारण मलद्वार के समीप कुटकुटाहट, जलन कांटे गड़ने जैसा दर्द, बार-बार पाखाना होने की इच्छा अथवा कब्ज आदि लक्षण प्रकट होते हैं। बसंत कथा वर्षा ऋतु में यह बीमारी अधिक तेजी पर रहती है।
कारण:- उत्तेजक पदार्थों तथा शराब आदि का सेवन, बार-बार जुलाब लेना, रात्रि जागरण, घी , मसाले तथा गरिष्ठ वस्तुओं का भोजन, पेट में अधिक वायु का एकत्र होना, बिना परिश्रम किए दिन रात बिताना, कब्ज, मल मूत्र त्याग के समय कांखना, भीगी घास अथवा अत्यधिक मुलायम वस्पतुएं पर निरंतर बैठे रहना, गर्भावस्था में कसकर कमर बांधना अथवा कसे हुए वस्त्र पहनना, एक ही आसन से बहुत अधिक समय तक बैठे रहकर काम करते रहना, अधिक मैथुन, यकृत संबंधी रोग तथा अपच आदि कारणों से यह बीमारी होती है।
खूनी बवासीर की चिकित्सा
खूनी बवासीर में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करें:-
ऐकोनाइट 30- चमकीले लाल रंग रक्त का स्राव , रक्त में उष्णता का अनुभव तथा रक्तस्राव के समय गुदा में सुई जैसी चुभन होने पर इसका प्रयोग करना चाहिए।
हेमामेलिस Q,6- काले रंग का रक्त स्राव होने पर इसे दें। ऐसे रक्तस्राव में दर्द ना होकर दुखन का अनुभव होता है। तथा रक्त की मात्रा भी अधिक होती है। गुदा में तपकन का अनुभव भी होता है।
डोलिकोस (क्यूक्यूना) Q- यह औषधि खूनी बवासीर के लिए अति उत्तम है। इसके प्रयोग से बवासीर का रक्त आना कुछ ही दिनों में बंद हो जाता है। इस औषधि के मूल अर्क की एक बूंद दिन में दो बार के हिसाब से कुछ दिनों तक देनी चाहिए।
फिकस रिलीजिओसा Q,1- यदि डोलिकोसिस से लाभ ना हो तो इसे देना चाहिए। चमकीले लाल रंग के रक्त स्राव की यह सर्वश्रेष्ठ औषधि है।
फास्फोरस 30- पाखाना आने के बाद हर बार रक्त की पिचकारी सी छुटने के लक्षण में इस औषधि का प्रयोग किया जाना चाहिए।
कलिन्सोनिया 30- गुदा के तिनके घुसे होने जैसा अनुभव तथा चुभन होना सख्त कब्ज एवं रक्त स्राव के लक्षणों में उपयोगी है।
नक्स-वोमिका 30 तथा सल्फर 1M - खूनी अथवा बादी- किसी भी प्रकार की बवासीर में, महीने में एक बार “सल्फर 1M” तथा “ नक्स-वोमिका 30 “की प्रतिदिन 3 मात्राएं लेनी चाहिए। परंतु जब सल्फर दिया जाए, तब 2 दिन पहले से तथा एक दो दिन बाद तक कोई अन्य औषधि नहीं देनी चाहिए। इन औषधियों के प्रयोग से दो-तीन महीने में बवासीर की शिकायत दूर हो जाती है। सूर्य अस्त के समय नक्स-वोमिका तथा प्रातः काल सल्फर का प्रयोग करना चाहिए। उचित चिकित्सक सूर्यास्त के समय नक्स-वोमिका 30 तथा प्रातः काल सूर्य उदय से पूर्व सल्फर देकर भी बवासीर के अनेक रोगियों को लाभ पहुंचा चुके हैं।
एस्क्युलस 3- यह बादी बवासीर की मुख्य औषधि है। गुदा में खुश्की के कारण ऐसा अनुभव होना- जैसे उसमें छोटे-छोटे तिनके घुसे हुए हो, गुदा में जलन के साथ दर्द, अशुद्ध रक्त द्वारा शिरा शोध के कारण मस्सों का बन जाना तथा अपवाद के रूप में कभी-कभी रक्तस्राव भी होना- इन सब लक्षणों में हितकर है।
रस-टाक्स 30- गुदा पर बोझ बने रहने का अनुभव, जैसे कोई तीज बाहर निकलने के लिए जोर मार रही हो, कमर में दर्द तथा पाखाना करते समय बवासीर के मस्सों का बाहर निकल आना इन सब लक्षणों में बहुत लाभकारी है।
म्युरियेटिक- एसिड 3- नीले रक्त के मस्से तथा उनमें स्पर्श असहिष्णुता के लक्षण, बिस्तर की चादर भी सहन ना हो पाना तथा मस्सों को गर्म पानी से धोने पर आराम का अनुभव होना इन सब लक्षणों में लाभकारी है। यह औषधि बच्चों की बवासीर में भी लाभ करती है।
इगनेशिया 200- गुदा पर बोझ तथा दबाव बना रहना, बैठने तथा खड़े रहने पर दर्द होना, परंतु चलते फिरने पर दर्द ना होना, अथवा कम हो जाना, गुदा में जलन तथा दर्द, पाखाना करते समय तनिक भी जोर लगाने से कांच निकल आना, पतले दस्त तथा गुदा के भीतर से ऊपर तक दर्द का जाना इन लक्षणों में बहुत लाभकारी है।
कार्बो-वेज 30- नीले रक्त के मस्से, उनका बाहर निकल आना, उनका फूलना, उनमें पस पड़ना तथा दुर्गंध आना, गुदा से स्राव का रिसना और वहां जलन होना इन सब लक्षणों में हितकर है।
ऐनाकार्डियम 6,30,200- गुदा से स्राव निकलते रहना, गुदा का एकदम असख्त हो जाना, आंतों का काम ना करना तथा पाखाना करते समय खुश्की के कारण रक्त निकलना इन सब लक्षणों में बहुत उपयोगी है।
ऐलो 6, 30- गुदा प्रवेश में भारीपन का अनुभव, मस्सों का आँव से सने रहना,गुदा में बहुत खुजली मचना, मस्सों में स्पर्श असहिष्णुता तथा ठंडे पानी से मस्सों को धोने पर आराम का अनुभव अथवा अंगूर के गुच्छे की भांति गुदा से बाहर मस्सों के गुच्छे बन जाना इन सभी लक्षणों में यह औषधि बहुत लाभकारी होती है।
बवासीर के अन्य लक्षणों की चिकित्सा
आर्सेनिक 30- गुदा में अत्यधिक जलन, मस्सों में चुभी हुई सुई के बाहर निकलने जैसा अनुभव, मस्सों का बाहर निकलना तथा गर्म सेक से आराम प्रतीत होना इन लक्षणों में बहुत हितकर है।
रैटेनिहया 3, 6- गुदा में कांच के टुकड़े भरे होने जैसा अनुभव, शौच जाने के घंटों बाद तक दर्द के साथ जलन का अनुभव, ढीला पाखाना आने पर भी कष्ट बना रहना तथा मस्सों का बाहर निकल आना,
नाइट्रिक एसिड6- मस्सों से रक्तस्राव बंद हो जाने पर भी गुदा प्रदेश में तीव्र चुभन तथा मस्सों का गुदा से बाहर लटकते रहना इन सब लक्षणों में बहुत लाभकारी है।
इस्क्यूलस 3- थोड़ा रक्तस्राव, गुदा, पीठ, कमर में दर्द, कब्ज तथा गुदा के स्थान में धारदार कांटे अटके होने जैसा अनुभव इन सब लक्षणों में लाभकारी है। मुख द्वारा सेवन के साथ ही गुदा के स्थान में भी इसी औषधि का मरहम लगाना चाहिए।
ऐन्टिम क्रूड 6- अंडे की सफेदी जैसा श्लेष्मा निकलना, पाखाना होते समय अत्यधिक कष्ट, कड़ा मल, रक्त स्राव तथा मलद्वार में जख्म हो जाने जैसा अनुभव इन लक्षणों में बहुत लाभकारी है।
ग्रैफाइटिस 6- गांठ गांठ के रूप में बड़े लैंड के बाहर निकलते समय अत्यधिक कष्ट का अनुभव, बहुत बड़ा बतौली जैसा मस्सा, मलांत्र को छुरी से काटे जाने जैसी प्रतीत होना, कभी-कभी मलद्वार में कुरमुरा हट, कभी छूने पर दर्द का अनुभव, दबाकर बैठने से दर्द होना तथा बवासीर के साथ मलद्वार का फटना इन सब बीमारियों में इस औषधि का बहुत ही अच्छा रिजल्ट पाया जाता है।
ऐलो 6- बवासीर के साथ पतले दस्त, अत्यधिक जलन तथा काटने जैसा दर्द, अत्यधिक कूथन के साथ अधिक परिमाण में मैले रक्त के गर्म खून का स्राव इन लक्षणों में इसका उपयोग कर सकते हैं।
हैमामेलिस 2X- बवासीर के मस्से से अत्यधिक रक्त बहने के लक्षण में लाभकारी है। यदि मसा बाहर हो तो 4 औंस पानी में हैमामेलिस मदर टिंचर की बूंदें डालकर, उसमें कोई स्वच्छ कपड़ा भिगोकर, मस्सों पर उसकी पट्टी लगा देने से रक्त बहना बंद हो जाता है।
कलिन्सोनिया 2X- कब्ज के साथ बवासीर, मलद्वार में भार का अनुभव,तथा खुजली, खूनी अथवा बादी बवासीर के मस्से एवं पुरानी बीमारी में इसका उपयोग किया जाना चाहिए।
एल्यूमीनियम 2X- यदि कलिन्सोनिया से लाभ ना हो तो इस औषधि के प्रयोग से लाभ होते देखा गया है।
ऐकोन 3X- तीव्र दर्द, गर्मी का अनुभव, श्लेष्मा अथवा रक्त का स्त्राव एवं ज्वर के साथ बेचैनी वाले अर्श में यह हितकर है। औषध के धावन को भी लगाया जाना चाहिए।
आर्सेनिक 3X, 6- अर्श के मस्से के लिए गर्म सुई गढ़ने जैसा अनुभव होना पीठ के जोड़ का दर्द, कमजोरी तथा सुस्ती, गर्मी का अनुभव एवं बच्चे का बाहर निकलना आदि लक्षणों में बहुत लाभकारी है।
लैकेसिस 6, 30 अथवा सिपिया 30- मस्से का आकार प्याज जैसा हो अथवा मस्सा निकलकर मलद्वार में टोपी कि भांति बैठ गया हो इन दोनों में से किसी एक औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
सल्फर - यह बवासीर का रोग विशेष कर पुराने बवासीर रोग की श्रेष्ठ औषधि है। अधिक कब्ज , छोटी-छोटी गांठों वाला रक्त लिपटा हुआ मल, बारंबार शौंच जाने की इच्छा होने पर भी मल का बिल्कुल ना निकलना,कभी रक्त मिश्रित पतले दस्त, मलद्वार में जलन तथा कुटकुटाहट आदि लक्षणों में यह औषधि विशेष लाभ प्रदान करती है
नक्स-वोमिका1X, 30- कभी-कभी पतली दस्त होना, कभी कब्ज, कभी पाखाने की इच्छा होने पर भी बहुत प्रयत्न करने पर भी पाखाना न निकलना। पेशाब करते समय तकलीफ होना, पाखाने के समय मससे का बाहर निकल आना तथा कमर में दर्द आदि लक्षणों में लाभकारी है। जो लोग अधिक घी , शराब अथवा मसालेदार वस्तुओं का सेवन करते हैं उनके लिए विशेषकर हितकर है।
ऐसेटिक-एसिड 3,30- यदि स्त्रियों के ॠतुस्राव का रुधिर योनि मार्ग से ना निकलकर,गुदा मार्ग से निकलने लगे तो उस स्थिति में यह औषधि लाभ करती है।