चाणक्य नीति
प्रणम्य शिरसा विष्णुं त्रैलोक्याधिपतिं प्रभुम् ।
नानाशास्त्रोद्धृतं वक्ष्ये राजनीतिसमुच्चयम् ।। 1 ।।
भावार्थ - मैं तीनो लोकों के स्वामी, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूँ | प्रभु को प्रणाम करने के बाद मैं अनेक शास्त्रों से जमा किये गए इस राजनितिक ज्ञान का वर्णन करूँगा।
व्याख्या - भारतीय ग्रन्थकार प्राचीनकाल से ही अपने उद्देश्य को निर्विघ्न पूर्ण करने के लिए सदा ही अपने इष्ट को नमन कर उसकी प्रार्थना करते थे। चाणक्य भी अपने ग्रन्थ राजनीति समुच्चय का वणर्न करने पूर्ब इसी परम्परा का निर्वाह करते हैं।
पढने बाले कृपया ध्यान दे कि आचार्य का प्रभाव इतना बड़ा कि इस ग्रन्थ को 'चाणक्य निति' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।आचार्य चाणक्य का यह ग्रन्थ कल्पना मात्र नहीं है,बरन ग्रन्थाकार ने अपने अनुभवों का सार निकालकर इस निति ग्रन्थ कि रचना कि है।
By studying these maxims from this scripture, that man acquires a knowledge of the most celebrated principles of duty and understands what ought and what ought not to be followed, and what is good and what is bad is most excellent.
भावार्थ- समझदार पुरुष इस शास्त्र का अध्ययन करके यह समझ जायेगा की संसार में क्या करने योग्य है और क्या नहीं करना चाहिए, क्या पुण्य है और क्या पाप है तथा धर्म और अधर्म क्या है, यह ज्ञान इस ग्रन्थ से प्राप्त किया जा सकता है।
अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः ।
धर्मोपदेशं विख्यातं कार्याऽकार्य शुभाऽशुभम् ।। 2 ।।
भावार्थ- समझदार पुरुष इस शास्त्र का अध्ययन करके यह समझ जायेगा की संसार में क्या करने योग्य है और क्या नहीं करना चाहिए, क्या पुण्य है और क्या पाप है तथा धर्म और अधर्म क्या है, यह ज्ञान इस ग्रन्थ से प्राप्त किया जा सकता है।
व्याख्या- बहुत से लोग बिना सोचे समझे,परिणामों की चिंता किये बिना कुछ ऐसे काम कर बैठते हैं जो उनके लिए दुखदाई सिद्ध होते हैं अत: शास्त्रों में करने और न करने योग्य कार्यों का स्पष्ट निर्देश किया गया है किन्तु आम लोगों की शास्त्रों तक पहुँच नहीं होती, इसी बात को दृष्टिगत रखकर आचार्य चाणक्य ने अपने इस नितिशास्त्रों में करने और न करने योग्य कार्यों का स्पष्ट निर्देश किया है। राजा एवं प्रजा जब जब भी धर्म बिरुद्ध कार्य करती है,तब तब उसे कष्ट उठाना पड़ता है।
Therefore with an eye to the public good, I shall speak that which, when understood, will lead to an understanding of things in their proper perspective.
भावार्थ- अब मैं आपके सामने वह ज्ञान रखने जा रहा हूँ जिसे जानने से व्यक्ति विद्वान् बन जाता है , उसमे निर्णय लेने की क्षमता आ जाती है , वह ये बात समझ जाता है की क्या करना है और कब करना है।
व्याख्या- चाणक्य ने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही है। कि मनुष्य को यदि राजनीति के सूक्ष्म रहस्यों का ज्ञान हो जाए, तो वह अपने सर्ववेत्ता होने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। अनेक धर्म और मत इस बात को एकमत होकर स्वीकार करते हैं। कि कोई व्यक्ति सम्पूर्ण बातें नहीं जान सकता,पर उसे अधिकांश विषयों की अच्छी जानकारी तो हो ही सकती है।
Even a pandit comes to grief by giving instruction to a foolish disciple, maintaining a wicked wife, and excessive familiarity with the miserable.
भावार्थ- मूर्ख शिष्य को ज्ञान देना, दुष्ट स्त्री का पालन पोषण करना, धन का नष्ट होना तथा दुःखी व्यक्ति के साथ व्यव्हार रखने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्ट उठाना पड़ता है।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य कहते हैंकि मुर्ख शिष्य को भली बात के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसी प्रकार दुष्ट आचरण करने वाली स्त्री का भरण पोषण करना अनुचित है और दुखी व्यक्तियों के पास उठने बैठने से, उनसे व्यवहार करने से पंडितों अर्थात बुद्धिमान पुरुषों को भी कष्ट उठाना पड़ता है।
EX:- सोए हुए व्यक्ति को जगाया जा सकता है,जागे हुए को नहीं। इसी प्रकार किसी अज्ञानी को आप ज्ञान का बोध करा सकते हैं। किन्तु जो मुर्ख हैऔर स्वय को ज्ञानी समझता है, उसे आप उसके हित की बात भी कहेंगे तो वह मुर्ख क्रोध अथवा अहंकार वश आपका ही अहित करेगा।
A wicked wife, a false friend, a saucy servant, and living in a house with a serpent in it are nothing but death.
भावार्थ- बुरे स्वभाव वाली , कठोर और कड़वे वचन बोलने वाली , गलत आचरण वाली स्त्री , धोकेबाज मित्र , उल्टा जवाब देने वाला मुँहफट नौकर और ऐसे घर में निवास करने से जहा सांप होने की सम्भावना हो ये सब बातें मृत्यु के समान हैं।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कटु बोलने बाली दुराचारिणी महिला, धूर्त मित्र से अर्थ धूर्त स्वाभाव बाला मित्र और सामने बोलने बाला या जबाब देने बाला नौकर ये सहने योग्य नहीं हैं। इन्हें स्वय से दूर कर देना चाहिए। ये किसी भी समय म्रत्यु तुल्य हानि पंहुचा सकते हैंइनकी तुलना घर में रहने बाले सर्प से की गई है जो कभी डस सकता है।
किसी भी व्व्यक्ति के लिए उसकी पत्नी का दुष्ट होना उसके लिए नरक के समान है। यदि अपने पति के प्रति श्रद्धापूर्वक समर्पण भावना नहीं रखती, तो व्यक्ति तनाव में रहता है। तनावग्रस्त होकर वह आत्महत्या तक के लिए प्रेरित हो जाता है।इसी भांति मित्र की नीचता, नौकर का मुहंफट होना, यह बातें म्रत्यु के समान दुखदाई है। व्यक्ति को इस तरह के लोगों को अपने दूर कर देना चाहिए।
One should save his money against hard times, and save his wife at the sacrifice of his riches, but invariably one should save his soul even at the sacrifice of his wife and riches.
भावार्थ- व्यक्ति को चाहिए की वह मुसीबत के समय के लिए धन बचा कर रखे और अगर स्त्री की रक्षा के लिए धन भी खर्च करना पड़े तो करदे, परन्तु स्त्री और धन से भी अधिक आवश्यक हैं की व्यक्ति सबसे पहले खुद की रक्षा करे।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य का कहना है कि संकट आपदा के लिए धन को इकठ्ठा रखना चाहिए। धन भी पहले पहले पत्नी की रक्षा करनी चाहिए।पत्नी की रक्षा करने के लिए धन खर्च करना पड़े तो इसमें संकोच नहीं करना चाहिए। कुछ लोग पत्नी से ज्यादा धन के लिए महत्व देते हैं।
Save your wealth against future calamity. Do not say, "What fear has a rich man, of calamity?" When riches begin to forsake one even the accumulated stock dwindles away.
भावार्थ- मुसीबत के लिए धन की रक्षा तो करनी ही चाहिए परन्तु धनि व्यक्ति को आपत्ति से क्या लेना देना वह तो सोचता हैं की धन से हर विपत्ति का सामना किया जा सकता हैं , परन्तु धनि व्यक्ति को यह सोचना चाहिए की लक्ष्मी का स्वभाव चंचल हैं वह कभी भी व्यक्ति को छोड़ कर जा सकती हैं।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य कहतें है कि संकट काल के लिए धन का संचय करो, साथ ही वे कहते हैं कि संचित धन भी नष्ट हो जाता है अतः व्यक्ति को धन पर पूरी तरह भरोसा करके निठल्ले नहीं बैठना चाहिए। मनुष्य को अपनी शक्ति, बुद्धि और उधम पर भरोसा करना चाहिए ,तभी वह विपत्ति को आने से रोक सकता है। अथवा आ जाने पर सूझ बुझ के साथ उसे टाला जा सकता है किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति धन का संचय करे ही नहीं।
Do not inhabit a country where you are not respected, earn your livelihood, have no friends, or acquire knowledge.
भावार्थ- जिस देश में आदर सम्मान न हो और और आजीविका का कोई साधन नहीं हैं, जहा के लोगो में आपस में भाई बंधु जैसा सम्बन्ध न हो , और रिश्तेदार भी न हो तथा किसी प्रकार के गुणों और विद्या को प्राप्त करने की सम्भावना भी न हो, ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए , ऐसे स्थान पर रहना उचित नहीं हैं।
व्याख्यान- सम्मान व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, जहाँ व्यक्ति को सम्मान न मिले, चाहे वह देश हो, गाँव हो या शहर,वहां व्यक्ति को नहीं रुकना अथवा रहना चाहिए। खली सम्मान से भी बात नहीं बनती। सम्मान से जीने के लिए व्यक्ति को जीविका चाहिए। जहाँ जीविका का साधन न हो, वहां भी व्यक्ति को नहीं रुकना चाहिए। निठल्ले, कार्यविहीन व्यक्ति को भला कौन सम्मान देगा।
Do not stay for a single day where there are not these five persons: a wealthy man, a brahmin well versed in Vedic lore, a king, a river, and a physician.
भावार्थ- जहा वेद को जानने वाला ब्राह्मण , धनि मानी व्यक्ति , राजा, नदी और चिकित्सक ये पांच चीज़े न हो , उस स्थान पर मनुष्य को एक दिन भी नहीं रहना चाहिए।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य ने जीवन के पांच मूल अवश्यक्तायों कि ओर ध्यान आकर्षित किया है और हिदायत दी है कि जहाँ ये पांच सुबिधायें न हो, वहां व्यक्ति को कुछ दिन भी नहीं रहना चाहिए और स्थाई रूप से निवास तो होना ही नहीं चाहिए।
Wise men should never go into a country where there are no means of earning one's livelihood, where the people have no dread of anybody, have no sense of shame, no intelligence, or a charitable disposition.
भावार्थ- जहां जीवन को चलाने के लिए आजीविका का कोई साधन न हो, व्यापर आदि विकसित न हो , किसी प्रकार के दंड मिलने का भय न हो, लोगो में शर्म न हो, व्यक्तियों में अच्छा आचरण न हो, उदारता न हो अर्थात उनमे दनीति,बुद्धिमान व्यक्ति को ऐसी जगह छोड़ देनी चाहिये।
व्याख्या- इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने पांच बातों पर बल दिया है। कि जहाँ ये बातें न हों, वहां निवास नहीं करना चाहिए। जहाँ व्यापार करने का साधन न हो, उस स्थान पर निवास करने से क्या लाभ? आजीविका से मनुष्य धन कमाता है, धन से परिवार चलता है,समाज में मान सम्मान बढ़ता है, सुख सुबिधायों की चीजें उपलब्ध की जाती है।
Test your servant when he is off duty, test your relatives when you are surrounded by problems, test your friends when you are in trouble and test your better half in your tough times.
व्याख्या- चाणक्य कहते हैं कि अपने से सम्बंधित नौकरों, रिश्तेदारों, मित्रों और पत्नी की परीक्षा किस किस समय होती है कि वे कितने अपने हैं, और कितने पराये, कितने विश्वासपत्र, कितने विश्वासघाती, कौन मित्र सच्चा है, और कौन बनाबटी और पत्नी का असली चहरा कैसा है, उसके विचार और भावनाएं कैसी हैंअधिक कार्य करवाने पर नौकर चाकरों की , दुःख आने पर रिश्तेदारों की , कष्ट आने पर मित्रो की तथा धन का नाश होने पर अपनी पत्नी की परख का ज्ञान हो जाता हैं।
He is a true friend who does not forsake us in time of need, misfortune, famine, or war, in a king's court, or at the crematorium (smasana).
भावार्थ- अच्छा मित्र हमें तब नहीं छोड़ेगा जब हमें उसकी जरूरत हो, कोई दुर्घटना हो गयी हो, अकाल पड़ा हो, युद्ध चल रहा हो, जब हमें राजा के दरबार में जाना पड़े, जब हमें शमशान घाट जाना पड़े।
व्याख्या- हर कोई व्यक्ति यह बोलता है कि उसके कुछ भाई बंधू हैं, पर आम तौर पर वह सच्चे और समर्पित बंधू की परख नहीं रखता। इसका भान उसे रोगी होने पर, दुःख पड़ने पर, अकाल पड़ने पर, शत्रु से संकट उपस्थित होने पर, कोई क़ानूनी मसला पड़ने पर या किसी परिजन की म्रत्यु पर कंधे से कन्धा मिलाकर जो शमशान तक भी चले, वाही सच्चा बंधू है। कहा भी जाता है- सुख के सब साथी होते हैं और दुःख कोई नहीं।
He who gives up what is imperishable for that which is perishable loses that which is imperishable and doubtlessly loses that which is perishable also.
भावार्थ- जो व्यक्ति निश्चित अर्थात जो हो सकता हैं इसे छोड़कर अनिश्चित जो नहीं हो सकता उसके पीछे भागता या समय बर्बाद करता हैं, वह असफल हो जाता हैं।
व्याख्या- इस श्लोक की आम बोलचाल में यही व्याख्या की है ---
आधी छोड़ पूरी को धाए।
ऐसे डूबे थाह न पाए ।।
कुछ लोग जो वर्तमान में उपलब्ध है और जिसका मिलना सहज है, उसे त्यागकर और अधिक पाने के चक्कर में रहते हैं,वह वर्तमान में सहज उपलब्ध से भी हाँथ धो बैठते हैं। यहं असंतोष का परिणाम है। असंतोषी व्यक्ति कभी सुखी नहीं रह सकता। वह सदा भटकता रहता है। उसकी आवश्यकताएँ सदा सिर उठाए खड़ी रहती हैं।
A wise man should marry a virgin of a respectable family even if she is deformed. He should not marry one of a low-class family, through beauty. Marriage in a family of equal status is preferable.
भावार्थ- बुद्धिमान व्यक्ति को अच्छे गुण वाली कुरूप कन्या से विवाह कर लेना चाहिए परन्तु उसे बुरे आचरण वाली सुन्दर कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सामाजिक प्रतिष्ठा एवं मानसिक शांति के लिए व्यक्ति को श्रेष्ठ कुल में ही विवाह सम्बन्ध करना चाहिए। कुलीन कन्या आदि बहुत अधिक सुन्दर भी न हो तो भी उसका वरण कर लेना चाहिए क्योकि अच्छे कुल की होने के कारण वह गुणी होगी। लोक लाज, मर्यादा, सम्मान, स्वाभिमान आदि से परिपूर्ण होगी।
Do not put your trust in rivers, men who carry weapons, beasts with claws or horns, women, and members of a royal family.
भावार्थ- बड़े बड़े नाखुनो वाले जानवरो , विशाल नदियों, बड़े बड़े सींग वाले आदि पशुओ, ऐसे लोग जिनके पास हतियार हो, राजा से समबन्धित कुल वाले व्यक्तियों इन सभी पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
व्याख्या-
नदीनां:- इसी प्रकार नदिओं पर भी आदमी को विश्वास नहीं करना चाहिए। शांत सी दिखाई देने बाली नदी न जाने कब उफान ले ले। जल का स्वाभाव बिलकुल अलग है, अतः जल आदि में प्रवेश करते समय व्यक्ति को पूरी तरह सावधान रहना चाहिए।
श्रृगिणां :- सींग बाले पशुयों से भी साबधान रहने के लिए आचार्य चाणक्य सुझाव देते हैं,सींग बाला पशु जब भी आक्रमण करेगा, घायल ही होगा या तो जान ही चली जाएगी या व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो जायेगा।
शस्त्रपाणीनां:- शास्त्रधारी का भी क्या भरोसा? न जाने कब उसका दिमाग घूम जाये और वह आप पर घातक बार कर दे। अतः चाणक्य शास्त्रधारी से भी साबधान रहने के लिए कहते है।
स्त्रिओं के ऊपर विश्वास न करने से चाणक्य का अभिप्राय यह है कि उन्हें स्वतंत्र तथा अरक्षित न छोड़े। उन्हें सर्वथा स्वतंत्र छोड़ देने से उनके पतित होने और भटकने का भय है।
व्याख्या- यदि विष से भी अमृत की प्राप्ति होती हो, तो उसका परित्याग नहीं करना चाहिये, बल्कि गृहण कर लेना चाहिए। यदि गंदे स्थान पर सोना पड़ा हो, तो उसे भी ले लेना चाहिए।स्थान विशेष का विचार नहीं करना चाहिए। किसी नीच पुरूष के पास कोई उत्तम विद्या है, तो उस व्यक्ति के कुल चरित्र के विचार न करके उसके पास से उस विद्या अथवा गुण को प्राप्त कर लेना चाहिए।
Women have hunger two-fold, shyness four-fold, daring six-fold, and lust eight-fold as compared to men.
भावार्थ- आदमियों के मुकाबले औरतो का खाना दोगुना होता हैं, बुद्धि चार गुना, साहस छह गुना और कामवासना आठ गुना होती हैं।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य ने कामसूत्र जैसे ग्रन्ध की रचना आचार्य वात्स्यायन के नाम से की थी जिसमे उन्होंने स्त्रियों के ऐसे ऐसे भेद उजागर किए हैं कि पुरे विश्व आज भी आश्चर्यचकित है। कि स्त्रियों का आहार पुरुषो से दो गुना होता है जबकि पुरूष जल्दबाजी में। अतः स्त्रियां भोजन का पूरा रस लेतीं हैं और स्वाद स्वाद में पुरूष से ज्यादा खा लेती हैं- लगभग दुगना।
बुद्धि भी स्त्रियों में पुरूष से चार गुना अधिक बताई है। सच है, स्त्रियाँ बुद्दिमान और पुरूष से अधिक विवेकशील होतीं हैं।
साहस भी स्त्रियों में पुरूष की अपेक्षा छ: गुना अधिक होता है। वे बहुत दुस्साहस पूर्ण कार्य परिणाम की चिंता किए बिना कर गुजरती हैं।
इसी प्रकार कामवासना भी उनमे पुरूष से आठ गुना अधिक होती है यह अलग बात है कि लज्जावश वे उसे प्रकट न करें। किन्तु लज्जा त्यागकर जब स्त्री अपनी कामुकता का प्रदर्शन करती है तो पुरूष उनके सामने कहीं भी नहीं टिक पाता। चूँकि लज्जा उसका आभूषण है, इसलिए वह उसका त्याग मुश्किल से ही कर पाती है।
तदहं संप्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया ।
येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रपद्यते ।। 3 ।।
भावार्थ- अब मैं आपके सामने वह ज्ञान रखने जा रहा हूँ जिसे जानने से व्यक्ति विद्वान् बन जाता है , उसमे निर्णय लेने की क्षमता आ जाती है , वह ये बात समझ जाता है की क्या करना है और कब करना है।
व्याख्या- चाणक्य ने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही है। कि मनुष्य को यदि राजनीति के सूक्ष्म रहस्यों का ज्ञान हो जाए, तो वह अपने सर्ववेत्ता होने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। अनेक धर्म और मत इस बात को एकमत होकर स्वीकार करते हैं। कि कोई व्यक्ति सम्पूर्ण बातें नहीं जान सकता,पर उसे अधिकांश विषयों की अच्छी जानकारी तो हो ही सकती है।
चाणक्य ने कहा है कि जो उसके ग्रन्थ अथवा राजनीति के संम्बंद्ध उनकी बातों को जान लेगा, वह राजनीति शास्त्र का प्रखंड पंडित हो जायेगा।। आचार्य चाणक्य ने जितने विश्वास से यह बात कही है,उससे सिद्ध होता है कि वे कितने आत्मविश्वासी थे और जो कुछ उन्होंने अपने निति शास्त्र में लिखा है। वे कामना करते हैं कि भारतबर्ष का प्रतिएक व्यक्ति इस ग्रन्थ का अध्यन कर सर्वग्य बने।
मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च ।
दुःखितै सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति ।। 4 ।।
भावार्थ- मूर्ख शिष्य को ज्ञान देना, दुष्ट स्त्री का पालन पोषण करना, धन का नष्ट होना तथा दुःखी व्यक्ति के साथ व्यव्हार रखने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्ट उठाना पड़ता है।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य कहते हैंकि मुर्ख शिष्य को भली बात के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसी प्रकार दुष्ट आचरण करने वाली स्त्री का भरण पोषण करना अनुचित है और दुखी व्यक्तियों के पास उठने बैठने से, उनसे व्यवहार करने से पंडितों अर्थात बुद्धिमान पुरुषों को भी कष्ट उठाना पड़ता है।
EX:- सोए हुए व्यक्ति को जगाया जा सकता है,जागे हुए को नहीं। इसी प्रकार किसी अज्ञानी को आप ज्ञान का बोध करा सकते हैं। किन्तु जो मुर्ख हैऔर स्वय को ज्ञानी समझता है, उसे आप उसके हित की बात भी कहेंगे तो वह मुर्ख क्रोध अथवा अहंकार वश आपका ही अहित करेगा।
दुष्टाभार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव नः संशयः ।। 5 ।।
भावार्थ- बुरे स्वभाव वाली , कठोर और कड़वे वचन बोलने वाली , गलत आचरण वाली स्त्री , धोकेबाज मित्र , उल्टा जवाब देने वाला मुँहफट नौकर और ऐसे घर में निवास करने से जहा सांप होने की सम्भावना हो ये सब बातें मृत्यु के समान हैं।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कटु बोलने बाली दुराचारिणी महिला, धूर्त मित्र से अर्थ धूर्त स्वाभाव बाला मित्र और सामने बोलने बाला या जबाब देने बाला नौकर ये सहने योग्य नहीं हैं। इन्हें स्वय से दूर कर देना चाहिए। ये किसी भी समय म्रत्यु तुल्य हानि पंहुचा सकते हैंइनकी तुलना घर में रहने बाले सर्प से की गई है जो कभी डस सकता है।
किसी भी व्व्यक्ति के लिए उसकी पत्नी का दुष्ट होना उसके लिए नरक के समान है। यदि अपने पति के प्रति श्रद्धापूर्वक समर्पण भावना नहीं रखती, तो व्यक्ति तनाव में रहता है। तनावग्रस्त होकर वह आत्महत्या तक के लिए प्रेरित हो जाता है।इसी भांति मित्र की नीचता, नौकर का मुहंफट होना, यह बातें म्रत्यु के समान दुखदाई है। व्यक्ति को इस तरह के लोगों को अपने दूर कर देना चाहिए।
आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेदनैरपि ।
आत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि ।। 6 ।।
भावार्थ- व्यक्ति को चाहिए की वह मुसीबत के समय के लिए धन बचा कर रखे और अगर स्त्री की रक्षा के लिए धन भी खर्च करना पड़े तो करदे, परन्तु स्त्री और धन से भी अधिक आवश्यक हैं की व्यक्ति सबसे पहले खुद की रक्षा करे।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य का कहना है कि संकट आपदा के लिए धन को इकठ्ठा रखना चाहिए। धन भी पहले पहले पत्नी की रक्षा करनी चाहिए।पत्नी की रक्षा करने के लिए धन खर्च करना पड़े तो इसमें संकोच नहीं करना चाहिए। कुछ लोग पत्नी से ज्यादा धन के लिए महत्व देते हैं।
यह उचित नहीं है किन्तु उनका यह भी मानना है कि अगर अपने प्राण संकट में हों तो धन और पत्नी का त्याग करके अपनी रक्षा करनी पड़े तो धन और पत्नी का त्याग करने में संकोच नहीं करना चाहिए। सोचने बाली बात यह भी है कि यदि स्वय न विनाश होता दिखाई दे रहा हो तो धन और स्त्री का प्रयोजन ही क्या रह जायेगा।
संकट पड़ने पर व्यक्ति धन देकर इस संकट को टाल सकता है। पर उनका यह भी कहना है कि परिवार की स्त्रियों का महत्व धन से कई गुना अधिक होता है। उनकी मान मर्यादा की रक्षा में व्यक्ति के कुल की मान मर्यादा की रक्षा होती है। व्यक्ति का अपना महत्व सबसे अधिक है। जीवन मरण की बात आ पड़े, तो सब कुछ त्यागकर अपनी रक्षा करनी चाहिए।
आपदार्थे धनं रक्षेच्छ्रीमतां कुत अापदः ।
कदाचिच्चलते लक्ष्मी : संचितोऽपिविनश्यति ।। 7 ।।
भावार्थ- मुसीबत के लिए धन की रक्षा तो करनी ही चाहिए परन्तु धनि व्यक्ति को आपत्ति से क्या लेना देना वह तो सोचता हैं की धन से हर विपत्ति का सामना किया जा सकता हैं , परन्तु धनि व्यक्ति को यह सोचना चाहिए की लक्ष्मी का स्वभाव चंचल हैं वह कभी भी व्यक्ति को छोड़ कर जा सकती हैं।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य कहतें है कि संकट काल के लिए धन का संचय करो, साथ ही वे कहते हैं कि संचित धन भी नष्ट हो जाता है अतः व्यक्ति को धन पर पूरी तरह भरोसा करके निठल्ले नहीं बैठना चाहिए। मनुष्य को अपनी शक्ति, बुद्धि और उधम पर भरोसा करना चाहिए ,तभी वह विपत्ति को आने से रोक सकता है। अथवा आ जाने पर सूझ बुझ के साथ उसे टाला जा सकता है किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति धन का संचय करे ही नहीं।
संकट काल के लिए तो चीटी तक भोजन इकट्ठा करके रखती है। वर्षा ऋतु उनके लिए संकट काल है, अतः वह पहले ही दाना दाना अपने बिलों में एकत्रित करती है। अत एव धन इकठ्ठा करना आवश्यक है, लेकिन उस पर पूरी तरह निर्भर रहना भी मूर्खता है।
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवः ।
न च विद्यागमऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ।। 8 ।।
भावार्थ- जिस देश में आदर सम्मान न हो और और आजीविका का कोई साधन नहीं हैं, जहा के लोगो में आपस में भाई बंधु जैसा सम्बन्ध न हो , और रिश्तेदार भी न हो तथा किसी प्रकार के गुणों और विद्या को प्राप्त करने की सम्भावना भी न हो, ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए , ऐसे स्थान पर रहना उचित नहीं हैं।
व्याख्यान- सम्मान व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है, जहाँ व्यक्ति को सम्मान न मिले, चाहे वह देश हो, गाँव हो या शहर,वहां व्यक्ति को नहीं रुकना अथवा रहना चाहिए। खली सम्मान से भी बात नहीं बनती। सम्मान से जीने के लिए व्यक्ति को जीविका चाहिए। जहाँ जीविका का साधन न हो, वहां भी व्यक्ति को नहीं रुकना चाहिए। निठल्ले, कार्यविहीन व्यक्ति को भला कौन सम्मान देगा।
दूसरी ओर चाणक्य यह भी कहते हैं कि जहाँ ये दोनों चीजें भी उपलब्ध न हों और व्यक्ति के पास अच्छे मित्र न हों, उस स्थान पर भी व्यक्ति को नहीं रहना चाहिएक्योकि संकट काल में मित्र और स्वजन ही काम आते है। इस पर भी जहाँ विद्या के साधन न हों, जहाँ अनपढ और मुर्ख रहते हों,वहां तो व्यक्ति को बिलकुल ही नहीं रहना चाहिए।
जहाँ विद्या नहीं, वहां बुद्धि नहीं। और जिसके पास बुद्धि नहीं, उसके पास कुछ भी नहीं होता। विद्याहीन को भला कोई सम्मान नहीं देता और कोई रोजगार नहीं देता और कोई मित्र भी नहीं रखता है। अतः व्यक्ति को सोच समझ कर अपना निवास स्थान बनाना चाहिए।
धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः ।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसं वसेत् ।। 9 ।।
भावार्थ- जहा वेद को जानने वाला ब्राह्मण , धनि मानी व्यक्ति , राजा, नदी और चिकित्सक ये पांच चीज़े न हो , उस स्थान पर मनुष्य को एक दिन भी नहीं रहना चाहिए।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य ने जीवन के पांच मूल अवश्यक्तायों कि ओर ध्यान आकर्षित किया है और हिदायत दी है कि जहाँ ये पांच सुबिधायें न हो, वहां व्यक्ति को कुछ दिन भी नहीं रहना चाहिए और स्थाई रूप से निवास तो होना ही नहीं चाहिए।
धनवान का कार्य है समय पड़ने पर ॠण देना। यदि हम इतिहास उठाकर देखें तो ज्ञात होता है कि संकट काल में प्रजा के हित के लिए राजा लोग भी धनिक लोगों से कर्ज आदि लेकर राज काज का कार्य सुचारू रूप से चलाते थे।
इसके अतिरिक्त धनि लोग राज्य की योजनायों में भी सहयोगी होते थे। क्षत्रिय अथवा वेदज्ञ ब्रह्मण का कार्य है उपदेश देकर लोगों को सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना। वेद कि तरह शाखा का अध्यन करके 6 कर्मों - पढना,पढाना,यज्ञ करना, दान देना और लेना के धर्म को जानने बाला ब्रह्मण क्षत्रिय होता है।
वेदपाठी, कर्मकांडी ब्रह्मण ज्ञान के भंडार होते हैं, अतः किसी भी देश प्रदेश में उनका विशेष महत्व मना गया है। राजा न्याय और रक्षा के लिए होता है। उसे भी धार्मिक होना चाहिए। जल ही जीवन है। खेतों कि सिचाई, उन्नति और वृद्धि के लिए नदियों का होना आवश्यक है। रोगी होने पर चिकित्सा के लिए वैध की आवश्यकता भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता ।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र सड्गतिम् ।। 10 ।।
भावार्थ- जहां जीवन को चलाने के लिए आजीविका का कोई साधन न हो, व्यापर आदि विकसित न हो , किसी प्रकार के दंड मिलने का भय न हो, लोगो में शर्म न हो, व्यक्तियों में अच्छा आचरण न हो, उदारता न हो अर्थात उनमे दनीति,बुद्धिमान व्यक्ति को ऐसी जगह छोड़ देनी चाहिये।
व्याख्या- इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने पांच बातों पर बल दिया है। कि जहाँ ये बातें न हों, वहां निवास नहीं करना चाहिए। जहाँ व्यापार करने का साधन न हो, उस स्थान पर निवास करने से क्या लाभ? आजीविका से मनुष्य धन कमाता है, धन से परिवार चलता है,समाज में मान सम्मान बढ़ता है, सुख सुबिधायों की चीजें उपलब्ध की जाती है।
आज के युग में अच्छी शिक्षा धन से ही प्राप्त कि जाती है। प्राचीन काल में शिक्षा में धन का कोई महत्व नहीं था। जहाँ कानून व्यवस्था अच्छी न हो अर्थात लोगों को दंड का भय न हो, जहाँ अपराधियों एवं अवांछनीय तत्वों का साम्राज्य होता है, वहां अराजकता फ़ैल जाती है और कोई भी व्यक्ति सुख चैन से नहीं रह सकता है, अतः वहां भी नहीं रहना चाहिए। लोक लाज, चतुरता और दान देने की प्रवृति भी लोगों में अवश्यक होनी चाहिए।
जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनागमे ।
मित्रं चापत्तिकाले तु भार्यां च विभवक्षये ।। 11 ।।
भावार्थ- अधिक कार्य करवाने पर नौकर चाकरों की , दुःख आने पर रिश्तेदारों की , कष्ट आने पर मित्रो की तथा धन का नाश होने पर अपनी पत्नी की परख का ज्ञान हो जाता हैं।
व्याख्या- चाणक्य कहते हैं कि अपने से सम्बंधित नौकरों, रिश्तेदारों, मित्रों और पत्नी की परीक्षा किस किस समय होती है कि वे कितने अपने हैं, और कितने पराये, कितने विश्वासपत्र, कितने विश्वासघाती, कौन मित्र सच्चा है, और कौन बनाबटी और पत्नी का असली चहरा कैसा है, उसके विचार और भावनाएं कैसी हैंअधिक कार्य करवाने पर नौकर चाकरों की , दुःख आने पर रिश्तेदारों की , कष्ट आने पर मित्रो की तथा धन का नाश होने पर अपनी पत्नी की परख का ज्ञान हो जाता हैं।
आप कोई व्यापार करते हैं और अचानक कोई ऐसी स्थिति बन जाती है कि आपको उससे उभरने के लिए नौकरों का सहयोग चाहिए, ऐसे में आपके नौकर के काम करने के ढंग से उनके स्वामी भक्त होने अथवा न होने का पता चलता है। आपके भाइयों का पता तब चलता है जब आप बुरे समय के प्रभाव में आकार किसी व्यसन के शिकार हो जाते हैं,
आपको मदिरापान अथवा जुए की लत लग जाती है, तब बहुत से रिश्तेदार जो सगे होने का दम भरते हैं, आपसे मुहं छुपा जाते हैं। उनके सगे होने या न होने का पता उस काल में चलता है।
आप पर कोई संकट आ गया, व्यापार डूब गया या घर में बीमारी आ गई है तथा धन की आवयश्कता पड़े, आप ऐसे में अपने मित्रों से सहयोग की अपेक्षा करतें हैं मगर ऐसे में मित्र आपके काम नहीं आते, ऐसे मित्र किस काम के? संकट काल में जो आपके काम आये।
अतः सिद्ध होता है कि मित्रों की परख संकट काल में होती है। अब बात आती है अपनी पत्नी की। पत्नी को पति का हम कदम मना गया है। जब तक आपके पास धन और दूसरी सुबिधायें हैं, तब तक पत्नी आपके साथ है,आपको प्यार भी करती है और सम्मान भी देती है- यह स्वाभाविक है। ऐसे में आप यह फैसला नहीं ले सकते कि पत्नी आपको सच्चा प्यार करती है या बह आपका सम्मान करती है।
पत्नी की सच्ची परख व्यक्ति को संकटकाल में होती है। आपका धन चुक गया अथवा आप शरीर से बैठ गए। इन हालातों में बहुत सी स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़कर किनारा कर लेतीं है। ऐसी स्त्री को पति की वफादार या हमकदम नहीं कहा जा सकता। संकटकाल में भी यदि पत्नी तन मन से समर्पित है,वाही सच्ची हमकदम है।
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रु-संकटे।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ।। 12 ।।
भावार्थ- अच्छा मित्र हमें तब नहीं छोड़ेगा जब हमें उसकी जरूरत हो, कोई दुर्घटना हो गयी हो, अकाल पड़ा हो, युद्ध चल रहा हो, जब हमें राजा के दरबार में जाना पड़े, जब हमें शमशान घाट जाना पड़े।
व्याख्या- हर कोई व्यक्ति यह बोलता है कि उसके कुछ भाई बंधू हैं, पर आम तौर पर वह सच्चे और समर्पित बंधू की परख नहीं रखता। इसका भान उसे रोगी होने पर, दुःख पड़ने पर, अकाल पड़ने पर, शत्रु से संकट उपस्थित होने पर, कोई क़ानूनी मसला पड़ने पर या किसी परिजन की म्रत्यु पर कंधे से कन्धा मिलाकर जो शमशान तक भी चले, वाही सच्चा बंधू है। कहा भी जाता है- सुख के सब साथी होते हैं और दुःख कोई नहीं।
सच्चा भाई तो बही होता है जो दुःख में भी साथ दे। यदि व्यक्ति रोगी हो गया है तो उसकी देखभाल करने में, अकाल पड़ने पर खुद भले ही भूखा रहे, पर बांधव को भोजन दे। यहाँ अकाल पड़ने से तात्पर्य उस स्थिति से है कि व्यक्ति के पास खाने को न हो। मुकदमा लग जाने पर जो अदालत में और शमशान में जाने के मामले में बराबर साथ दे, वाही सच्चा बांधव है।
यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते ।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि ।। 13 ।।
भावार्थ- जो व्यक्ति निश्चित अर्थात जो हो सकता हैं इसे छोड़कर अनिश्चित जो नहीं हो सकता उसके पीछे भागता या समय बर्बाद करता हैं, वह असफल हो जाता हैं।
व्याख्या- इस श्लोक की आम बोलचाल में यही व्याख्या की है ---
आधी छोड़ पूरी को धाए।
ऐसे डूबे थाह न पाए ।।
कुछ लोग जो वर्तमान में उपलब्ध है और जिसका मिलना सहज है, उसे त्यागकर और अधिक पाने के चक्कर में रहते हैं,वह वर्तमान में सहज उपलब्ध से भी हाँथ धो बैठते हैं। यहं असंतोष का परिणाम है। असंतोषी व्यक्ति कभी सुखी नहीं रह सकता। वह सदा भटकता रहता है। उसकी आवश्यकताएँ सदा सिर उठाए खड़ी रहती हैं।
वरयेत्कुलजां प्राज्ञो विरूपामपि कन्यकाम् ।
रूपशीलां न नीचस्य विवाहः सदृशे कुले ।। 14 ।।
भावार्थ- बुद्धिमान व्यक्ति को अच्छे गुण वाली कुरूप कन्या से विवाह कर लेना चाहिए परन्तु उसे बुरे आचरण वाली सुन्दर कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि सामाजिक प्रतिष्ठा एवं मानसिक शांति के लिए व्यक्ति को श्रेष्ठ कुल में ही विवाह सम्बन्ध करना चाहिए। कुलीन कन्या आदि बहुत अधिक सुन्दर भी न हो तो भी उसका वरण कर लेना चाहिए क्योकि अच्छे कुल की होने के कारण वह गुणी होगी। लोक लाज, मर्यादा, सम्मान, स्वाभिमान आदि से परिपूर्ण होगी।
सम्मान करने और कराने वाली होगी किन्तु नीच कुल की कन्या आति सुंदरी हो तो भी वरण योग्य नहीं है क्योकि नीच कुल की होने के कारण उसकी प्रवृति भी नीच होगी। यहाँ सौन्दर्य गौण हो जाता है। सुंदर स्त्री हो किन्तु उसका कुल नीच हो तो ऐसा सौन्दर्य किसी काम का नहीं। ऐसी स्त्री कभी भी अपना रंग दिखा सकती है। देखा गया है कि नीच कुलों की स्त्रियाँ पति को पति नहीं समझतीं।
परिवार के छोटे बड़ों को सम्मान नहीं देतीं और व्यक्ति का जीवन नर्क हो जाता है। अतः व्यक्ति को सदैब कुलीन घराने से ही वैबाहिक सम्बन्ध जोड़ना चाहिए। यहाँ यह बात विशेष ध्यान देने बलि है कि श्रेष्ठ कुल यदि गरीब भी हो, तो भी धनवान नीच कुल से अच्छा है।
नदीनां शस्त्रपाणीनां नखीनां श्रृगिणां तथा ।
विश्वासो नैव कर्तव्यः स्त्रीषुराजकुलेषु च ।। 15 ।।
भावार्थ- बड़े बड़े नाखुनो वाले जानवरो , विशाल नदियों, बड़े बड़े सींग वाले आदि पशुओ, ऐसे लोग जिनके पास हतियार हो, राजा से समबन्धित कुल वाले व्यक्तियों इन सभी पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
व्याख्या-
नखीनां:- नाखूनों वाले हिंसक पशुओं गधा, शेर, बाघ, भालू, आदि का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। पशु प्रवृत्ति है, न जाने कब आक्रमण कर बैठे और व्यक्ति को चीर फाड़कर फेंक दे।
नदीनां:- इसी प्रकार नदिओं पर भी आदमी को विश्वास नहीं करना चाहिए। शांत सी दिखाई देने बाली नदी न जाने कब उफान ले ले। जल का स्वाभाव बिलकुल अलग है, अतः जल आदि में प्रवेश करते समय व्यक्ति को पूरी तरह सावधान रहना चाहिए।
श्रृगिणां :- सींग बाले पशुयों से भी साबधान रहने के लिए आचार्य चाणक्य सुझाव देते हैं,सींग बाला पशु जब भी आक्रमण करेगा, घायल ही होगा या तो जान ही चली जाएगी या व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो जायेगा।
शस्त्रपाणीनां:- शास्त्रधारी का भी क्या भरोसा? न जाने कब उसका दिमाग घूम जाये और वह आप पर घातक बार कर दे। अतः चाणक्य शास्त्रधारी से भी साबधान रहने के लिए कहते है।
स्त्रिओं के ऊपर विश्वास न करने से चाणक्य का अभिप्राय यह है कि उन्हें स्वतंत्र तथा अरक्षित न छोड़े। उन्हें सर्वथा स्वतंत्र छोड़ देने से उनके पतित होने और भटकने का भय है।
उन्हें सर्वथा स्वंत्रत छोड़ने के लिए अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उन पर विश्वास करना चाहिए। स्त्रियों पर पूरी तरह अविश्वास करने से तो सारी घर गृहस्ती चौपट हो जाएगी। घर गृहस्थी तो स्त्री पुरूष के विश्वास के आधार पर ही चलती है। इसी प्रकार चाणक्य ने राजकुल के सदस्यों पर पूरी तरह विश्वास न करने का आदेश दिया है
राजकुल के हांथो में सत्ता होती है, ताकत होती है, उनका कहा ही कानून होता है अतः वह रूठ कर नाराज होकर न जाने कब कैसा आदेश देकर व्यक्ति को संकट में डाल दें। कब प्राण ले लें। अतः इन सभी व्यक्तियों से सदा साबधान रहें और उन पर विश्वास न करे।
Even from poison extract nectar, wash and take back gold if it has fallen in filth, receive the highest knowledge from a low-born person, and possess virtuous qualities even if she were born in a disreputable family.
भावार्थ- विष में अमृत हो तो भी उसे ग्रहण करे , अपवित्र और अशुद्ध वस्तुओ में भी यदि कोई कीमती सामान हो तो उठा ले, यदि नीच मनुष्य के पास कोई अच्छी विद्या, कला, गन हो तो भी सिख ले, इसी प्रकार अगर नीच कुल की कन्या अगर गुणी हो तो उसे ग्रहण करना चाहिए।
विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम् ।
नीचादप्युत्तमां विद्यास्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि ।। 16 ।।
भावार्थ- विष में अमृत हो तो भी उसे ग्रहण करे , अपवित्र और अशुद्ध वस्तुओ में भी यदि कोई कीमती सामान हो तो उठा ले, यदि नीच मनुष्य के पास कोई अच्छी विद्या, कला, गन हो तो भी सिख ले, इसी प्रकार अगर नीच कुल की कन्या अगर गुणी हो तो उसे ग्रहण करना चाहिए।
व्याख्या- यदि विष से भी अमृत की प्राप्ति होती हो, तो उसका परित्याग नहीं करना चाहिये, बल्कि गृहण कर लेना चाहिए। यदि गंदे स्थान पर सोना पड़ा हो, तो उसे भी ले लेना चाहिए।स्थान विशेष का विचार नहीं करना चाहिए। किसी नीच पुरूष के पास कोई उत्तम विद्या है, तो उस व्यक्ति के कुल चरित्र के विचार न करके उसके पास से उस विद्या अथवा गुण को प्राप्त कर लेना चाहिए।
इसी प्रकार नीच कुल की भी सुंदर लड़की रत्न रूप है, गुणी है, तो उसके परिवार की चिंता किये बिना उसे भी ग्रहण कर लेना चाहिए। आचार्य चाणक्य के कहने का यही अर्थ है कि घोर बुरे व्यक्ति से भी यदि अच्छी शिक्षा मिले, अच्छी वस्तु मिले तो उसे प्राप्त करने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।
स्त्रीणां द्विगुण आहारो लज्जा चापि चतुर्गणा ।
साहसं षड्गुणं चैव कामश्चाष्टगुणः स्मृत ।। 18 ।।
भावार्थ- आदमियों के मुकाबले औरतो का खाना दोगुना होता हैं, बुद्धि चार गुना, साहस छह गुना और कामवासना आठ गुना होती हैं।
व्याख्या- आचार्य चाणक्य ने कामसूत्र जैसे ग्रन्ध की रचना आचार्य वात्स्यायन के नाम से की थी जिसमे उन्होंने स्त्रियों के ऐसे ऐसे भेद उजागर किए हैं कि पुरे विश्व आज भी आश्चर्यचकित है। कि स्त्रियों का आहार पुरुषो से दो गुना होता है जबकि पुरूष जल्दबाजी में। अतः स्त्रियां भोजन का पूरा रस लेतीं हैं और स्वाद स्वाद में पुरूष से ज्यादा खा लेती हैं- लगभग दुगना।
बुद्धि भी स्त्रियों में पुरूष से चार गुना अधिक बताई है। सच है, स्त्रियाँ बुद्दिमान और पुरूष से अधिक विवेकशील होतीं हैं।
साहस भी स्त्रियों में पुरूष की अपेक्षा छ: गुना अधिक होता है। वे बहुत दुस्साहस पूर्ण कार्य परिणाम की चिंता किए बिना कर गुजरती हैं।
इसी प्रकार कामवासना भी उनमे पुरूष से आठ गुना अधिक होती है यह अलग बात है कि लज्जावश वे उसे प्रकट न करें। किन्तु लज्जा त्यागकर जब स्त्री अपनी कामुकता का प्रदर्शन करती है तो पुरूष उनके सामने कहीं भी नहीं टिक पाता। चूँकि लज्जा उसका आभूषण है, इसलिए वह उसका त्याग मुश्किल से ही कर पाती है।